की ओर से जवाब भी दिया गया है परन्तु उसे हमने नहीं देखा। सरका कांग्रेस-चरितावली। छपही गया। यह अनुयाद हिन्दी समाचार पत्रों के सम्पादकों के ही समर्पण भी किया गया है । परन्तु आश्चर्य की बात है कि, अब तक इसको उचित समालोचना किसी सम्पादक ने नहीं की। हमारी तुच्छ समा में यह भाता है कि यदि हिन्दी पत्र के सम्पादकों को यह बात सा मुच बुरी मालूम हुई है और यह पुस्तक कलंकित है तो उन चाहिए कि सय मिल कर, “भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता का इतिहास भएर विचार और हिन्दू धर्म के अनुसार लिख कर प्रकाशित करके इस कसं करें और पढ़ने वालों को भी विदित हो जावे कि दत्त महाय का कथन कहां तक सच है। ऋग्वेद का भी प्रापने बंगाली में अनुवाद किया है। रामायण भी महाभारत का भी अंगरेजी में पद्यात्मक अनुवाद करके आपने रूपाया इन पुस्तकों का विलायत में बड़ा प्रादर हुआ। सुनते हैं कि अपने प थोड़े ही समय में, इसकी दस दस हजार कापी विक गई। इस के सिवाय राज नीति के सम्बन्धी में भी आप बहुत ही अच्छ सलाह गवर्मेट और मजा दोनों को दिया करते हैं । सम्बत १५ में जब भारत में अकाल पड़ा तब आप ने अकाल का कारण श्री उसके उपाय लिख कर सरकार को बतलाएं। ये लेख “लार्ड कर्जन के खुली चिट्ठियां” इस नाम से अंगरेजी में पुस्तकाकार रूपे हैं इसके पढ़ने से आपकी विद्वता और रेव्यन्यू सम्बन्धी पूर्ण परिचय मिलता है। देश में बार बार क्यों अकाल पड़ते हैं, उन रोकने का क्या उपाय है ? प्रजा किस तरह प्रसन्न रह सकती है? सब बातों को इस पुस्तक द्वारा खूध ही अच्छी तरह समझाया । स्थायी बन्दोबस्त के गुण और उससे होने वाले लाभों को भी बि चना इस पुस्तक में की गई है। सुनते हैं इस पुस्तक का सरकार के ने दत्त के विचारों और यक्तियों का खंडन करके सर्वसाधारण समाधान ज़रूर किया होगा परन्तु दत्त के बनाए हुए मार्ग अर्थात स्थायी बन्दोवस्त से जो प्रजा का कल्याण हो सकता है वह अनुभव
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