पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/८९

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मिस्टर नारायण गणेश चन्दावरकर । MA नरपति हित कर्ता द्वेषतां याति लोके, जनपद हित कर्ता त्यज्यते पार्थिवेन्द्र इति महति विरोधे वतर्माने समाने, नृपति जन पदानाम् दुर्लभः कार्य कर्ता ।* गरेजी राज्य में, यदि कोई अति कठिन काम भारत वासियों के लिए है तो यह यही है कि राणा और पंजा दोनों को प्रसन्न रखना । बहुत से ऐसे भारत में संपूत पैदा हो चुके हैं जिन्होंने राजहित के लिए अपने देशयांधयों को बहुत ही हानि पहुंचाई। इन स्वदेश हानिकारकों को बदले में बड़ी बड़ी उपाधि और पदवियां प्रदान की गई। उनको नाना प्रकार के पदक भी दिए गए। वे राजकानों के ऐसे शुभचिन्तक समझ गए कि उनके नाम, स्वर्णाक्षरों में लिखे जाकर, वे अंमर बना दिए गए हैं। परन्तु उन लोगों के नाम केवल राजकर्ताओं के ही स्वर्ण ग्रंथों में लिखे जाने के योग्य हैं। परन्तु सच पूंथिए तो, जिन लोगों ने स्वदेश सेवा करके, अपने स्वदेश बांधवों के हृदय पट पर, अपने नाम अजरामर कर दिए हैं; वे धन्य हैं। चाहे वे राजकर्ताओं के नौकर ही हों; परन्तु उनकी दोनों पक्ष की सेवा सराहनीय कही जा सकती है। जो सेवा धर्म के बंधनों को काट कर स्वतंत्र रूप से राजा और मजा दोनों का हित साधन करने में प्रयत्न करते हैं उन की महिमा क्या कहनी है।

  • राजा का हित करने वाले से मजा द्वेष रखती है, प्रजा की

भलाई चाहने वाले का राजा आदर नहीं करता; राजा और प्रजा दोनों में इस तरह बराबर की कशाकशी में ऐसे मनुष्य दुर्लभ हैं जो अपने काम से, राजा और प्रजा दोनों का प्यारा हो। १०