अच्छा कालिज में हो उसे वह इनाम दिया जावे । चन्दावरकर दक्षिणा फेलो नियत हुए । सन् १८७८ में, आपने इन्दुप्रकाश समाचार एंग्लो मराठी पत्र है अर्थात् प्राधा अंगरेज़ी और आधा मराठी ।गुजराती पढ़ने का लाभ मुक्त में प्राप्त हो । इस प्रकार मातृभाषा की उन्नति ७४ कांग्रेस-धरितायलो। यथार्थ में ऐसे नर संसार में दुर्लभ हैं। ईश्वर की कृपा से, अब ऐसे नर रख भारत में कहीं कहीं पर चमकने लगे हैं। यह बात राष्ट्र हित के विचार से बड़ी सन्तोष जनक है। अतएव उपरोक्त गुणों से भूपित नारायणगणेश चन्दावरकर का चरित हम पाठकों को जानने के लिए नीचे देते हैं। चन्दावरकर का जन्म सन् १८५५ में, कानडा जिले के अन्तरगत होनावर स्थान में हुआ । बाल्यावस्था में, आपको प्रारम्भिक शिक्षा कानडा जिले में ही प्राप्त हुई। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के निमित्त प्राप सन् १८६० में, बम्बई गए। और वहां एलफिनस्टन् कालिज में भरती हुए। वहां भाप ने खूब अच्छी तरह ध्यान लगा कर पढ़ा। धार के महाराज ने एक इनाम नियत किया था कि जो विद्यार्थी सबसे ने उस इनाम को प्राप्त किया, एक और भी इनाम एक अंगरेज़ी निबन्ध लिखने के कारण आपको मिला था। सन् १८७५ में, आपने बी० एक परीक्षा पास की। बी० ए० की परीक्षा में आप सब से प्रवल निकले। प्रतएव जेम्सटेलर का इनाम अापने पाया। इस के बाद शीघ्र ही आप पत्र के अंगरेजी भाग का सम्पादन करना स्वीकार किया। और मराठी में बहुत से समाचार पत्र हैं जिन में प्राधा भाग अंग रेज़ी का रहता है । अतएव मातृभाषा के विचार से जो पत्र नहीं परीदते वे अंगरेज़ी के कारण उस पत्र को खरीद कर अपनी मातृ-भाषा फो लाभ पहुंचाते हैं। दोनों भाषाओं में निकलने से, 'अंगरेज़ी भाषा जानने वालों को अपनी मातृभाषा का ज्ञान अनायास ही हो जाता है। परन्तु इस प्रकार संयुक्त प्रान्त में समाचार पत्र निकालने की प्रथा नहीं है। यदि यह प्रथा हमारे प्रान्त में भी जारी हो नंगरेज़ी लिसे पढ़े लोगों को, जो अंगरेजी समाचार पत्र पढ़ते हैं, हिन्दी यदुत गएद हो सकती है। की इन्दुप्रकाश जाय तो
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