16 काजर की कोठरा कि 'वेशक ऐसा ही है। सूरजर्जासह न भी उसे वडे गौर से 'पढा और बशा ऐसा ही है ' कहते हुए अपने सडके रामसिंह ये हाथ म दे दिया और उम पढने के साथ ही रामसिंह के मुह से भी यहीं निकला कि बेशक ऐसा ही जमीदार सालसिंह के घर मे बडा ही कोहराम मचा हुआ था। उसकी प्यारी लडकी सरला घर में से यकायक गायब हो गई थी और वह भी इस ढग से कि याद करके लेजा फ्टता और विश्वास होता था कि उस बेचारी के खून से किसी निदयी ने अपना हाथ रगा है । बाहर-भीतर हा-हाकार मचा हुआ या गौर इस खयाल से तो और भी ज्यादे रुलाई आती थी कि आज ही उसे ब्याहने के लिए राजे-गाजे के साप बरात आवेगी। लालसिंह मिजान का बडा ही कडुआ आदमी था। गुस्सा तो माना ईश्वर के घर ही से उसके हिस्से मे पड़ा था। रज हो जाना उसके लिए कोई बडी बात न थी, जरा-जरा से कसूर पर बिगड जाता और बरसो की जान-पहिचान तथा मुरीअत का कुछ भी खयाल न करता। यदि विशेष प्राप्ति की आशा न होती तो उसके यहा नौकर मजदूरली या सिपाही एक भी दिखाई न देता। इसीसे प्रगट है कि वह लोगो को देता भी या मगर उनका दान इज्जत के साथ न होता और लोगो की बेइज्जती का फजीहता करने मे ही वह अपनी शान समझता था । यह सब कुछ था मगर रुपये ने उसके सब ऐबो पर जालीलेट का पर्दा डाल रक्खा था। उसके पास दौलत बेशुमार थी मगर लडका कोई भी न था, सिप एक लडकी वही सरला थी जिसके सथ से आज दो घरो मे रोना पीटना मचा हुआ था। वह अपनी इस लडकी को प्यार भी बहुत करता था और भाई भतीजे मौजूद रहने पर भी अपनी कुल जायदाद जिसे उसने अपने उद्योग से पैदा किया था इसी लडकी के नाम लिख कर तथा वह वसीयतनामा राजा के पास रस कर अपने भाई-भतीजो को जो रुपये-पैसे की तरफ से दुखी रहा करते थे सूखा हीटरका दिया था, हो खाने-पीने की तकलीफ वह किसी को भी नही देता था। उसके चौके मे चाह कितने ही अदमी बैठ कर खाते इसका यह कुछ खयाल न करता बल्कि खुशी से लोगो को अपने साथ खाने में शरीक
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