पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३५

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राजर को काठरी चाहिए जिसका विराया मैं अलग से दूंगा। बुढिया (यशफिया का खुशी-खुशी उठा कर) बस-चस बस, इतने म मेरे घर का सच बखूबी चल जायगा, नाच-मुजरे की भी जरूरत न रहेगी। वापी रहा गहा-पडा, सो आप जानिए और बादी जाने, जिस तरह रखियेगा रहेगी। अब मैं एक ही दो दिन मे अपना और बादी का गहना येच कर वर्जा भी चुवा देती हू, क्योकि ऐसे सरदार की खिदमत मे रहने वाली वादी के घर किसी तगादगीर का आना अच्छा नहीं है और मैं यह बातें पसन्द नहीं करती। इतना कह कर बुढिया उठ गई और हरनन्दन बाबू ने उसकी आखिरी चात का कुछ जवाब न दिया । बुढिया के चले जाने के बाद घण्टे भर तक हरनन्दन बादी के बनावटी प्यार और नसरे का आनद लते रहे और इसके बाद उठ कर अपने डेरे को तरफ रवाना हुए। दिन आधे घण्टे से ज्यादे वाकी है । आसमान पर कही-कही बादल के गहरे टुकडे दिखाई दे रहे है और साथ ही इसके बरसाती हवा भी इस बात की खवर दे रही है कि यही टुबडे थोडी देर मे इकट्ठे होकर जमीन को परा पोर कर देंगे। इस समय हम अपने पाठको को जिस बाग मे ले चलते है वह एक ता मालियो की कारीगरी और शौकीन मालिक की निगरानी तथा मुस्तैदी के सबब खुद ही रौनकपर रहा करता है, दूसरे, आजक्लक मौसिम बर्सात ने उसके जीवन को और भी उभाड रक्खा है। यह बाग जिसके बीच में एक सुदर कोठी भी बनी हुई है, हमारे हरनदन बाबू के सच्च और दिली दोस्त रामसिंह का है और इस समय वे स्वय हरन दन बाबू के हाथ मे हाथ दिए और धीरे-धीरे टहलते हुए इस बाग के सुदर गुलबूटे और क्यारिया का आनद ले रहे हैं। देखने वाला तो यही कहगा कि य दाना मित्र इस दुनिया का सच्चा सुख लूट रहे है' मगर नही, इस समय ये दोना एक भारी चितामेडूबे हुए है और किसी कठिन मामले पोरवाईपर विचार कर रहे है जो कि आगे चल कर उनकी बातचीत से आपका मालूम - होगा।