पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३४

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34 काजर की कोठरी मोचे हुए थी कि आप ऐसे अमीर उठाईगीरावी तरह चूल्हा रसना पमन्द न हरन दन मैं नहीं चाहता कि जिसे मैं अपना बनाक उस दूसरे में आगे हाथ फैलाना पड़े या कोई दूसरा उसे उगली भी लगाव ! बुढ़िया ठीक है, ठीर है, भला ऐसायब हो सकता है? जव माप बदौलत मरा पेट भरेगा तो दूसर कम्वस्त को आने ही क्या दूगी। आप ही ऐसे सरदार को खिदमत में रहन रे लिए तो हजारो रुपं सच करके मन इसे आदमी बनाया है तालीम दिलवाई है, और सच तो यो है कि यह आपये लामम है भी। मैं बडे तरदुद मे पड़ी रहती पी और सोचती थी कि यहता दिन-रात आपके ध्यान में डूबी रहती है और में फज के बोझ से दबी जा रही हूँ, आसिर काम से चलेगा? चला अब मैं हलकी हुई, आप जानें और बादी जाने इसकी इज्जत हुरमत सब आपर हाथ में है। हरनन्दन भला बताओ तो सही क्तिन रपे महीने में तुम्हारा अच्छी तरह गुजर हो सकता है। बुढ़िया ऐ हुजूर । मला मैं क्या बताऊ? आपसे कौन-सी बात छिपी हुई है। घर मे दस आदमी साने वाले ठहरे, तिस पर महगी के मारे नाको में दम हो रहा है । हाय का फुटकर सच अलग ही दिन-रात परेशान किये रहता है। अभी कल की बात है कि छाटे नवाब साहब इस दा सौ रुप महीना देन को राजी थे, मगर नाच-मुजरा सब बद करन को कहते थे, मैंने मजूर न विया क्योंकि नाच-मुजरे से सैकडो रुपये या जात है तब कही घर का काम मुश्किल स चलता है, खाली दो सौ रुपये से क्या हो सकता w है। हरन दन सैर नाच-मुजरा तो मेरे वक्त में भी बद करना ही पड़ेगा मगर आदत बनी रहने के खयाल से खुद सुना रूगा और उसका इनाम अलग दिया करूगा । अभी तो मैं इसके लिए चार सौ रुपये महीने का इन्त- जाम कर देता ह फिर पीछे दसा जायगा। मैंने अपना इरादा और अपने बाप का हाल भी बादी से कह दिया है, तुम सुनोगी तोखुश होवोगी। (बीस अशफिया बुढिया ये आगे फेंक कर) तो इस महीने की तनखाह पेशगी दे जाता है। अब तुम्ह कोई दूसरा ऑलीशान मकान भी किराए ले लेना