पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/४०

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40 माजर की कोठरी ? पुर्जे का पढ के हरनन्दन वा सब वे पहिले क्या करना उचित या लाल. (कुछ सोचकर) ठीक है, उस समय मादी के पास जाना ही हरनन्दन का उचित था क्योकि वह नीति-कुशल लहकाह, इस बात को मैं खूव जानता हूं। सूरज० देवल उसी दिन नहीं बल्कि जब तक हमारा मतलव न निकल तब तब हरनन्दन का बादी से मेल रखना ही चाहिए। लाल ठीक है मगर यह काम वा हरनन के अतिरिक्त कार्ड और आरमो भी कर सकता। सूरज० वेशव पर सरताह मगर वही जिस उतनी ही फिरहा जितनी हरन दन को। इसके अतिरिक्त वादी का जा माशा हरमन से हा सकतीह वह किसी दूसरे से कैसे हो सकती है? इस बात का जवाब तो लालसिंह न कुछ न दिया मगर सूरजसिंह का पजा, उम्मीद भरी खुशी और मुहब्बत से पकड के बोला । मेरे मेहरबान मरजसिंह जी' आज आपका आना मेरे लिए बड़ा ही मुबार हुआ। यदि आप आवर इन सब भेदा को न खालते ना न मालूम मेरी क्या अवस्था होती और मेरे नालायक भतीजे किस तरह मेरी हडिडया चवाते । उडती हुई खबरो और भतीजो की रगीन बातो न तो मुझे एक्दम से उल्लू बना दिया और वेचार हरनदन की तरफ से बडे-बडे शक मेरे दिल में बठा दिए मगर मान आपकी मेहरवानी ने उन स्याह घटबा को मिटाकर मेरा दिल हरनन्दा की तरफ से साफ कर दिया। आज हरन दन और वादो को हाथ म हाथ दिए मरे बाजार टहलता हुआ भी अगर कोई मुझे दिखा द ता भी मेरे दिल में उसकी तरफ से कोई शव न बैठेगा, हा वैचारी सरला का पता लगना-न लगना यह आपको मेहरबानी और मेरे माग्य वे आधीन है।" सूरज बेचारी सरला का पता लगेगा और जरूर लगेगा। हरन दन ने खुद मुझे अपने बाप के सामन कहा है वि बादी न सरला का दिखा देने का वादा किया है और इस बात का भी निश्चय दिला दिया है वि सरला पारसनाथ के कब्जे में है। लात० (चोंकवर) पारसनाथ के कम्जे म 11 मूरज • जी हा। इस बात का निश्चय पर लन बाद हान