46 काजर की वाठरी म्पया बचाने के लिए बइज्जती सह सक्त हा। मर इस पहन वा मतलब यह नहीं है कि मैं रुपये सब करने से भागता हू या रुपय को सरला से बढ ये प्यार करता हूँ, मगर हा, व्यथ रुपये खच वरना भी बुरा समझता हू । यो तो तुम जो कुछ कहोगे उन लोगो के लिए दूगा,मगर घडी घडी मेरे दिल में ग्रही वात पैदा होती ह कि रडी के यहा हरन दन को देख लेने से ही मेरा क्या मतलव निकलेगा? मान लिया जाय कि उसकी बदचलनी का सबूत मिल जायगा, तो मैं विना नष्ट उठाए और बिना स्पये वर्वाद किए ही मगर यह मान लू कि हग्न दन बदचलन है तो इसमे नुक्सान ही क्या है ? बल्कि पायदा ही है । इसके अतिरिक्त मैं एक बात और भी सोचता हू, वह यह कि यदि मैंन रडी 7 मकान पर जाकर हरन दन को देख लिया और उसने मुझे अपन सामन दब कर किसी तरह की परवाह न की या दो एक शब्द अदबी के घोल बठा तो मुझे कितना रन्ज होगा? अपने चाचा लालासह की दोरगी और चलती-फिरती बातें सुनकर पारसनाथ कुछ नाउम्मीद और उदास हो गया। उसके दिल मे तरह-तरह के खुटवे पैदा होने लगे। लालसिंह की बातो से उसके दिली भेद का कुछ पता नही चलता औरन रुपये मिलने की ही पूरी-पूरी उम्मीद हो सकती यो, अस्तु आज वादी को क्या देगे, इस विचार न उसे और भी दुखी किया तथापि बलवती भाशा ने उसका पीछा न छोडा और वह जल्दी के साथ कुछ विचार पर बोला "आप तो हलदन को बडा नकऔर सुजन समझते है, तो क्या उससे ऐसी बेअदबी होने की भी आशा करते ह?' लाल० जब तुम हमारे विचार को रद करने यहते हो कि वह नालायर और ऐयाश है तथा इस बात का सबूत देन के लिए भी तैयार हो तो अगर मैं तुम्हे सच्चा मानूगा तो जरूर दिल मे यह बात पदा होगी ही कि अगर वह मेरे साथ बेअदबी का बर्ताव करे तो ताज्जुब नहीं। पारस० (बुछ लाजवाब होकर) खैर आप बड़े हैं आपसे बहस करना उचित नहीं समझता, जो कुछ आप आज्ञा देंगे मैं वही करूगा। लाल. अच्छा इस समय तुम जाओ, में स्नान-पूजा तथा भोजन इत्यादि से छुट्टी पारर इस विषय पर विचार करूगा, फिर जो कुछ निश्चय होगा तुम्हें चुनवा पर कहूगा।
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