पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/५२

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52 काजर की कोठरी मोच रही हो जिनका न सिर है न पर। सरला जो कुछ मैंन सोचा है वह बहुत ठीक है। मेरे साथ चाह कितनी ही बुराई की जाय या मेरी बोटी-बोटी भी काट डाली जाय मगर मैं अपनी दूसरी शादी तो कदापि न करूगी । तुम मुये यह नहीं समझा सक्ते कि यह दूसरी शादी नहीं है और न तुम्हारा समझाना मैं मान सक्ती हूँ मगर हा मैं किसी के साथ शादी न करके भी अपन पिता की जान दा तरह से बचा सकती है और इसमे किसी तरह की कठिनाई भी नहीं है। पारस० खेर और बातो पर तो पीछे बहस ररूगा पहिले यह पूछता हूं कि वे दोनो ढग कौन से है जिनसे तुम हम लोगा की जान बचा सक्ती हो? सरला उनम से एक ढग तो म बता नहीं सकती मगर दूसरा ढग साफ-साफ है कि मेरी जान निकल जान ही से सब बखेडा ते हो जायेगा। पारस० यह सब सोचना तुम्हारी नादानी है अगर तुम अपने हिन्दू घम को जानती हाती या कोई शास्त्र पढी होती तो मेरी बातों पर विश्वास करती, यह न सोचती कि मेरी शादी हो चुकी, अव जो शादी होगी वह दूसरी शादी कहलावेगी, और जान देने मे किसी तरह का । सरला (बात काट कर) अगर मैं काई शास्त्र नही भी पढी तो भी शास्त्र के असल मम को अपनी माता की कृपा से अच्छी तरह सम- झती हू । उसने मुझे एक ऐसा लटका बता दिया है जिससे पूरे धमशास्त्र का भेद मुझे मालूम हो गया है। उसने मुझसे कहा था कि बेटी जा बात चित को बुरी मालूम हो या जिस बात के ध्यान से दिल मे जरा भी खुटका पैदा हो, अथवा जिस बात से लज्जा को कुछ भी सम्बध हो अर्थात जिसके कहने से लज्जित हाना पडे उसके विषय म समझ सखो वि शास्त्र में वही-न-कही उसकी मनाही जरूर लिखी होगी। अस्तु मरे स्वार्थी भाई, इस विषय मे तुम मुझे कुछ भी नहीं समझा सक्त क्याकि मैं माता की इस बात को आज्ञा बल्कि उसकी सब बातोपा वेद-वाक्य में बरावर समझती हूँ। पारस० (कुछ लज्जित होकर) अब तुम्हारी इन लडपन को सी बाता का मैं कहा तक जवाब दू और जब तुम मुझो को स्वार्थी