पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/५३

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काजर की कोठरी 53 कहकर पुकारती हो तो अब तुम्हें किसी तरह का उपदेश करना भी व्यथ सरला नि सन्देह ऐसा ही है, अब इस विषय मे तुम मुझे कुछ भी समझाने-बुझाने का उद्योग न करो। जो कुछ समझना था मैं समझ चुकी और जो कुछ निश्चय करना था उसे मैं निश्चय कर चुकी । पारस० (लज्जा और निराशा के साथ) खैर अब मुझे तुम्हारे हृदय की कठोरता का हाल मालूम हो गया और निश्चय हो गया कि तुम्हे किसी के साथ मुहब्बत नहीं है और न किसी की जान जाने को ही परवाह है। सरला ठीक है, अगर तुम उस ढग और कह्न पर नही समझे तो इस दूसरे ढग से जरुर समझ जाओगे कि जब मुझे अपनी ही जान प्यारी नहीं है तो दूसरे की जान का खयाल कब हो सकता है ? पारस० अच्छा तब मैं अपनी जान से भी हाथ धो लेता है और कह देना है कि इस विषय मे अब एक शब्द भी मुह से न निकालूगा । सरला केवल इसी विषय में नहीं बल्कि मेरे किसी विषय म भी अब तुम्ह बोलना न चाहिए क्योकि मैं तुम्हारी बातें सुनना नहीं चाहती। इतना कह पर सरला पारसनाय से कुछ दूर जा बैठी और धुप हो गई। पारसनाथ को आखामे क्रोध की लाली दिखाई देन लगी मगर सरला को कुछ कहने या समझाने की उसकी हिम्मत न पडी। थोड़ी देर के बाद पुन उस कोठडी का दर्वाजा खुला और एक नकाबपोश ने कोठडी के अन्दर आपर इन दोना कैदियो से पूछा, "क्या तुम लोगो को किसी चीज की जरूरत है?" इसके जवाब मे सरला ने तो कहा, "हा, मुझे मौत की जरूरत है।" और पारसनाथ ने कहा "मैं पायखाने जाया चाहता हूं।" वह आदमी पारसनाथ को लेकर काठडी के बाहर निकल गया और कोठडी का दर्वाजा पुन पहिले की तरह बन्द हो गया। इस समय हम बादी को उसके मकान मे छत के ऊपर वाली उसी कोठडी में अकेली बैठी हुई देखते हैं जिसमें दो दफे पहिले भी उसे पारसनाथ और