पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/५९

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काजर की कोठरी 59 ? वसीयतनामा लिखने का मौका न मिल ।' उन लोगान जो कुछ चाल सोची थी वह तो अब पूरी होती नजर नहीं आती। वादी वह कौन-सी चाल पारस. वही कि मेरा चचा खुद हरनदन स रज हावर यह हुक्म दे देता कि सरला को खोजकर उसकी दूसरी शादी कर दी जाय । बस उम समय मुझे खैरखाह बनने का मौका मिल जाता ! मैं यट मरला वा प्रण्ट करके कह देता कि इमे हरन दन वे दोस्त डाकुआ के क ज म स निकाल लाया हू और जर उसकी शादी किसी दूसरे के माथ हो जाती तब रसव पहिले वि मेरा चचा दूसरा वसीयतनामा लिखे मैं उसे मारकरबमेटा मिटा देता। ऐसी अवस्था म मुये उन लिने वसीयतनामे के अनुसार आधी दौलत अवश्य मिलजाती। इसके अतिरिक्त और भी बहुत-गी बातें हैं जिन तुमनही समझसक्ती (कुछ गौर वरखे)मगर अब जो हम लाग गौर करन हैं तोहम लोगा की पिछली कारवाही बिल्कुलजह नुम म मिल गइ-सी जान पडती है क्योकि मेरे चचा हरन दन के खिलाफ कोई कायवाही करत दिखाई नहीं देत। आज हरिहरसिंह न भी यही बात कही थी, खाली तुम्हारे चचा के मार जान स कोई फायदा नहीं हो सकता। फायदा तभी होगा जय चाचा भी मारा जाय और सरला भी अपनी मुशो से शादी कर ले।' मार बडे अफ्सोम की बात है कि मैं मरला का भी किसी तरह समझा न सका। मैं स्वय कैदी बनकर उसके पास गया और बहुत तरह से ममझाया-बुझाया मगर उमने एक न मानी, उल्टे मुझी का नवकूफ बना छोड दिया। वादी (ताज्जुब से) हा ' तुम सरला व पाम गय थ' लच्छा ना वहा क्या हुआ, मुझसे खुलासा हो ? पारस ने अपना सरला के पास जान और वहा स लुच्चन कर वरग लौट आने का हाल बादी से बयान किया और तव वादी ने मुस्कंगवरकहा "अगर मैं सरला को दूसरे के साथ शादी करने पर राजी कर दू और वर इस बात को खुशी से मजर कर ले तो मुये क्या इनाम मिनेगा? इतना सुन कर पाग्म ने उसके गले म हाथ डाल दिया और प्या-