काजर की कोठरी 61 पारस और कोई चाह न दे मगर में ता अपना घर तुम्हारे ऊपर मोठावर किये बैठा हू, अस्तु मैं सब कुछ कर सकता है। तुम कहो भी नो मही, मनलब तो अपना काम होने से है। दादी (सिर झुकाती हुई नखरे वे साथ) मैं क्या कहू, मुझसे ता कहा नहीजाता। पारस फिर वही नादानी की वात । तुम ता अजब वववफ औरत हो । वहा बहो, तुम्ह मेरे सर की वसम, कहो ता सही वे क्या मागती थी? वादी कहती थी कि इस समय तो सरला के कुल गहन मुझे दे दो जो व्याह वाले दिन उस वक्त उसके बदन पर ये जव तुम लोगो ने उसे घर से बाहर निकाला था और जब तुम्हारा काम हो जाय अर्यात सरला प्रसन्नता से दूसरे के साथ शादी करले बल्कि सभी से खुल्लमखुल्ला कह दे कि हा यह शादी मैन अपनी खुशी से की.ह, तब दस हजार रुपया नगद मुझे मिले।' मगर वे चाहती हैं कि रुपये की बाबत आप एक पुर्जा पहिले ही निख कर उह दे दें । यस यहा तो शात है जो अम्मा कहती थी। पारस० ता इसम हज ही क्या है ? आखिर वह रपया जा मुझे मिलेगा तुम्हारा ही तो है। फिर आज अगर दस हजार देने का पुर्जा मैं लिख ही दूगा तो क्या हज है ? मगर हा एक बात जरा मुश्किल है । ? पारस० गहने जो सरला ये बदन पर थे उनमे से आधे के लगभग ता हम लोगो ने बैच डाले है। बादी तो हज ही क्या है, जो कुछ हो उह द दो, मैं उन्ह कह-सुनकर ठीक कर लूगी, आखिर कुछ भी मेरी बात मानेंगी या नहीं ? ऐसी ही जिद्द करन पर उतारू होगा तो मैं उनका साथ ही छोड दूगी। वाह, जिसे मैं प्यार करती हू उसी को यह मनमाना सतावेंगा । यह मुझसे बर्दाश्त न हो सकेगा ! अच्छा तो बुलाऊ निगोडी अम्मा का? पारस० हा हां बुलाओ, पुर्जा तो मैं इसी समय लिस देता है और वचे हुए गहने कल इमी समय लेकर हाजिर हो जाक गा। मगर तुम उह निगाटी क्यो कहती हो ? वह बडी हैं, उहे ऐसा न कहना चाहिये । बादी वह क्या
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