सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

64 बाजरकी काटी 7 उसी अम्मा शसुश कर लिया और उसकी लौही या मुसाहय बन भर रहने लगी। इसरे बदन पर कुछ जेवर और एक हजार नगद रुपया भी या गो उपने वादोये पारा यह वह वर अमानत में रख दिया थाfr 'एक नजूमी (ज्योतिषी) के बहे मुताबिर में समपती हूँ कि मेरी उम्र बहुत कम है अब मैं और चार-पाच साल से ज्यादै इस दुनिया में नहीं रह परती, साथ ही इसके मेरान तीनोई मालिकहनावारिस, एक सानीया वह जाती रही, अस्तु इम एक हजार रुपये मोजो मेर पास है, अपनी आर बत मुधारने राजरिया समक्ष पर तुम्हारे पास अमानत रख देती है और उम्मीद करती है कि इससे मेर मरन व बाद मेरी मारबत ठीक कर वन वगैरह बनवा दोगी।' रुपये वाले की कदर सब जगह होती है, अस्तु बादी की माने भी सुशा- खुशी उमे स्पये सहित अपने घर मे रख लिया और लौंडी के बदले में उसे अपना मुमाहब समझा। बस इस समय बादी की माने जा कुछ पारसनाथ से लिखवाया वह इसी की सलाह का नतीजा था। बादी की अम्मारा देख कर सुसतानी उठ खड़ी हुई और बोला, कहिये क्या रग है।" बादी की अम्मा सब ठीक है, जो कुछ मन वहा उमन बरन लिख दिया, देखो यह उसके हाथ का पुर्जा है। मुलतानी (पुरजा पद पर) बस इतने ही से मतलव था, आइय बठ जाइये। गहने के बारे में उसने क्या कहा? वादी की अम्मा (बैठ कर) गहनाआधा वो उमने बच साया बाकी आमा कल आवगा। जो कुछ करना है तुम्ही को करना है क्योकि तुम्हारे ही कहे मुताविय और तुम्हारे ही भरोसे पर कायवाई की गई है। सुलतानी आप किसी तरह का तरददुद न करें, सरला ना राजा कर लेना मेरे लिए कोई बात नहीं है, इस काम के लिए केवल हरन दन बाबू के हाथ की एक चिट्ठी उसी मजमून को चाहिए जसावि मैं कह चुकी हूँ, बस और कुछ नहीं। बादी की अम्मा यकीन तो है कि हरन दन बाबू भी सरला के वार म चिट्ठी लिख देंगे। जब उहे सरलास कुछ मतलब ही नहीं रहा तो चिट्ठी