राजर की कोठरी 69 बताती हू, तुम उसे सरला के पास ले जाओ, बेशक वह सरला को समझा कर दूसरे के साथ ब्याह करने पर राजी कर देगी। उम्मीद है कि पारस- नाय इस बात को मजूर वरपे इमामी को सरला के पास ले जायगा 1 बम हरनन्दन बस बस बस, में समय गया। यह तीव बहुत ही अच्छी है और पारसनाथ इस बात को जरूर मान लेगा। दादी मगर फिर यह भी तो उसे बताना चाहिए कि वह किसके साथ व्याह करने पर सरला यो गजी करे। हरनन्दन में सोच कर इसका जवाब दृगा, पयोकि इसका फैसला करना होगा कि वह आदमी भी सरला के साथ न्याह करने से इन्कार न करे जिसके साथ उसका सम्बध होना मैं पसद करू । वादी हा यह तो जरूर होना चाहिए, माथ ही इसके इसका बदोबस्त भी बहुत जरूरी है कि मरला के दिल से तुम्हारा ध्यान जाता रहे और उमे तुम्हारी तरफ मे विसी तरह की उम्मीद वाकी न रहे। हरनदन यह तो कोई मुश्किल नहीं है, मैं एक चिट्ठी ऐसी लिस दूगा जिसे देखते ही मरला का दिल मेरी तर" से खट्टा जायगा और उसमे वादी बस-बम, मैं आपका मतलब समय गई बेशर ऐसा करने स मामला ठीक हो जायगा (कुछ सोच कर) मगर कम्बस्त इमामी का लालच हद से ज्यादा है। हरनन्दन पोई चिन्ता नही, जो कुछ कहोगी उसे दे दूगा। और फिर उसे चाहे जो कुछ दिया जाय मगर इसमे कोई शक नहीं कि अगर यह काम मेरी इच्छानुसार हो जायगा तो मैं तुम्ह दस हजार रुपये नकद दूगा और यपन को तुम्हारे हाथ बिका हुआ समझूगा। बादो (मुहब्बत से हरन दन का हाप पकड फे) जहा तफ होगा मैं तुम्हारे काम म कोशिश करूगी। मुझे इस बात की लालच नहीं है कि तुम मुझे दस हजार रुपये दोगे। तुम मुझे चाहते हो, मेरे लिए यही बहुत है । जब कि मैं अपने को तुम्हारी मुहम्वत पर योछावर कर चुकी हू , तब भला मुझे इस बात की स्वाहिश कब हो सकती है कि तुमसे रुपये वसूल
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