पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/७०

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70 काजर की वोठरी करू' (लम्बी सासें लेकर) अफसास वितुम मुझे आज भी वैसा ही समझते हो जैसा पहिल दिन समझे ये ।। इतना कह कर वादी नखरे मे दो-चार बूद आसू को बहावर आचल स माल पोछने लगी।हरन दन ने भी उसके गले में हाथ डाल कर कसूर की माफी मागी और एक अनूठे ढग से उसे प्रमल करने का विचार किया। इसके बाद क्या हुआ सो वहने की कोई जरूरत नही । बस इतना ही कहना काफी है कि हरनदन दो घण्ट तक और वैठे तया इसके बाद उहान अपने घर का रास्ता लिया। अब हम थोडा-सा हाल लालसिंह के घर का बयान करत है। लालसिंह को घर से गायब हुए आज तीन या चार दिन हो चुके है । न तो वे किसी से कुछ कह गये हैं और न कुछ बता ही गये हैं कि किसबै साय कहा जाते हैं और कब लौट कर आवेंगे। अपने साथ कुछ सफर का सामान भी नहीं ले गये जिससे किसी तरह को दिलजमयी होती और यह समझा जाता विकही सफर मे गये हैं, काम हो जाने पर लौट आवेंगे। वह तो रात के समय यकायक अपने पलग से गायब हो गये और विसी तरह का शक भी न होने पाया । न तो पहरे वाला ही कुछ बताता है और न खिदमतगारही रिसी तरह का शक जाहिर करता है। सव के मब तरदुद और परेशानी मे पढे हैं तथा ताज्जुब के साथ एक दूसरे का मुहै देखते हैं । इसी तरह पारसनाथ भी परेशान चारो तरफ घूमता है और अपने चाचा का पता लगाने की फिक्र कर रहा है। उसन भी लालसिंह की तलाश मे कई आदमी भेजे है, मगर उसवा यह उद्योग चचा की मुहब्बत के खयाल से नहीं है बल्कि इस खयाल से है कि कही यह फायवाही भी किसी चालाकी सयाल से न की गई हो । वह कई दफे अपनी चाची के पास गया और हमदर्दी दिखा कर तरह तरह के सवाल किए मगर उसका जुबानी भी किसी तरह का पता न लगा बल्कि उसकी चाची न उसे कई दफे कहा कि 'बेटा । तुम्हारे ऐसा साया भतीजा भी अगर अपने चचा का पता न लगावेगातो और किससे ऐसे कठिन काम वीउम्मीद हो सकती है?' इस तरदुद और दौड-पप मे चार दिन गुजर गये, मगर लालसिंह