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पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/७४

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74 काजर को कोठरी चला गया। í आज हम फिर हरनन्दन और उनके दोस्त रामसिंह का एक साथ हाथ में हाथ दिए उसी चाग के अदर सर करते देखते है जिसमे एक दफे पहित देख चुके हैं। यो तो उन दोनों में बहुत देर से बातें हो रही है, मगर हमे इस समय की थोडी-सी बातो का लिखना जरूरी जान पडता है। राम० ईश्वर न करे कोई इन कम्बम्त रडियो के फेर मे पडे । इनकी चालबाजियो को समयना बडा ही कठिन है। रास्ते में चलने वाले बडे-बडे धूर्तों और चालावा को मुह के वल गिरते मैं अपनी आखो मे देख चुका हूँ। हरन दन ठीक है, मेरा भी यही कौल है मगर मेरे बारे मे तुम इस तरह बदगुमानियो को दिल म जगह न दो। कोई वुद्धिमान और पटा- लिखा आदमी इन लोगो के हथकडे मे पड कर बरबाद नहीं हो सकता, चाह वह अपनी खुशदिली वे मवव इन लागा की सोहवत का शौकीन ही क्यो न हो। राम० कभी नहीं, मरा दिल इस बात का नहीं मान सकता, यद्यपि यह हो सकता है कि तुम उसकी मुट्ठी म न आओ,क्यादि मोहबत थाडे दिन की और दूसरे ख्याल से ह तिस पर मैं डडा लिए हरदम तुम्हारे सर पर मुस्तैद रहता है, मगर जा आदमी अपना दिल खुश करन की नीयत से इनकी मोहवत मे बैठेगा वह बिना नुक्सान उठाय वेदाग नहीं बच सक्ता चाहे वह कैसा ही चालाक क्यो न हो । और जिस पर रडी आशिक हो गइ, समझ लो कि वह तो जड-मूल से नाश हा गया। जो रडिया की वाता पर विश्वास करता है उस पर ईश्वर नी विश्वास नहीं करता। क्या तुम्ह याद नहीं है वि पहिले पहिल जब हम-तुम दाना भपन दोस्त नारायण के जिद्द करने पर गौहर के मकान पर गए थ ता दवजि के अदर घुसते समय पर कापते थे मगर जब ऊपर जाकर उनके सामने दो घण्टे बैठ चुके तब वह यात जाती रहो और यह गोचन गवि यहा को विम बात को लाग दुरा वहते है हरनन्दन ठीक है और इसमें भी वाईसदह नहीं दिइस दुनिया मे जितनी बातें ऐब पी गिनी जाती है उन सभो में निपुणता भी इन्हीं की