पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काजर की कोठरी 75 - कृपा का फल होता है झूठ बालना, बहाना करना, बात बनाना, वईमानी या दगाबाजी करना, इत्यादि तो इनकी सोहबत का साधारण और मामूला पाठ है मगर साथ ही इसके पुरान विद्वाना का यह भी कील है कि इनको मोहबत ने विना आदमी चतुर नही हो सकता। यह बात मैं इस ख्याल में नहीं कहता वि इनकी मोहबत मुझे पस द ह यल्कि एक मामूली तौर पर कहता हू। राम० (मुसरा पर) काजर वी काठरी मे कैसह सयानो जाय, काजर वी रेख एक लागि है पं लागि है । और कुछ नही ता इन दो ही दिना को सोहबत का इतना अगर ता तुम पर हा ही गया कि इनवी गाह वत कुछ आवश्यक समझने लग। हरन दन नही नहीं, मेरे मन का यह मतलब नहीं था तुम ना खामखाह की बदगुमानी करते हा राम० अच्छा अच्छा दूसरा ही मतलब सही मगर यह तो बता कि क्या जिमीदार लोग कम धूत और चालाव तथा फरेबी होत हैं ? हरन दन (हस वर) बहुत सारी । अब आप दूसरे गम्त पर चर, तो क्या आप जिमीदारा की पक्ति से बाहर है रामा (हस कर) सैर दन पचड़ा को जाना ऐसी दिल्लगी ना हमारे-तुम्हारे बीच बहुत दिनो तक होती रहेगी, हा यह बताओ कि अब तुम वादी के यहा कब जाओग? हरनन्दन आज तो नहीं मगर पल जरूर जाऊगा तब तक यकीन है कि मब काम ठीक हुआ रहगा। राम० अब केवल दिन और ममय ठीक करना ही बाकी है। हरन दन उसका निश्चय ता तुम ही करोगे। राम० अगर वादी से सरला का पता लग गया हाता तो ज्याद तकलीफ करन की जरूरत न पडती और सहज ही मे सब काम हो जाता। हरनदन मैन बहुत चाहा था कि वह किसी तरह सरला का पता बता दे मगरम्बस्त ने बताया नही और कहने लगी कि मुझे मालूमहीनही, मैंने भी ज्याद जोर देना उचित न जाना। पैर कोई हज नही, हमारा यह हाय भी भरपूर बैठगा मगर ? राम