80 काजर की कोठरी कहा और चाहा, मगर उस कपल नही क्यिा। सबसे भागे जवाब तो उसका यह था कि 'अगर मैं हरन दन की बात कबूल नहीं करती और उम की इच्छानुसार काम कर देने की मम नही खाती तो वह सरला के नाम की चिट्ठी कदापि नही लिखेगा और जब तक हलदन को लिखी हुई चिट्ठी मरला को दिखाई न जायगी तब तक सरला भी बातो के फेर मे न मावेगी और उसका कह्ना भी वाजिब ही था इसी से लाचार होवर मुझे भी स्वीकार करना ही पड़ा। हरिहर० (लम्बी मास लेकर) खर किसी तरह तुम्हारा काम हो जाय वही बडी बात है । मेरे साथ सरला की शादी हुई तो क्या और न भी हुई तो क्या पाग्म० (हरिहर का पजा पक्ड कर) नही नही, मेरे दोस्त तुम्ह इस बात ने रज्जन होना चाहिये, मैं तुम्हारे फायदे का भी बन्दोबस्त कर चुका हू । सग्ला के साथ शादी होने पर जो कुछ तुम्ह फायदा होता सो अव भी हुए बिना न रहगा। हरिहर० (कुछ चिढ कर) सो कैसे हो सकता है ? पारस० ऐसे हो सस्ता है-जिस आदमी के साथ सरला की शादी होगी वह रुपये के बारे में तुम्हारे नाम एव वसीयतनामा लिख देगा।' हरिहर० यह बात तो जरा मुश्किल है। मगर मुझे उन रुपया की कुछ ऐसी परवाह भी नहीं है। मैं तो इतना ही चाहता हूं कि किसी तरह तुम्हारा यह काम हो जाय । पारस० मुझे विश्वास है कि ऐसा हो जायगा और अगरन भी हुआ तो मैं इकरार करता हूँ कि मुझे जो कुछ मिलेगा उसमें आधा तुम्हारा होगा। हरिहर० (कुछ खुश होकर) सर जो होगा देखा जायगा। अब यह बताओ कि बुढिया यहा कर मावेगी और सरला के पास कब जायगी ? पारस० मह आती ही होगी। ये बाते हो ही रही थी कि शहर से किसी ने दवाजा खटखटाया। s १ यह गात पारसनाथ ने अपनी तरफ से रहो।
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