काजर नो काठरी 81 मामूली परिचय देने के बाद दर्वाजा खोला गया तो हरान्दन वे एक दोस्त के माप सुलतानी दर्वाजे के अदर पैर रसती हुई दिखाई पड़ी। 6 यह सुलतानी यही औरत है जिसे हम वादी के मकान म दिखला आय है और लिख आये हैं कि इसने हाल ही में बादो के यहा नौकरी की है। बादी की तरफ से इसी ने सरला को समझाने का ठीका लिया है और यही इम काम का बीड़ा उठा कर आई है कि सरला को दूसरे के साथ शादी करने पर राजी कर लूगी। जिस समय वह उन लोगो के सामने पहुची, पारस- भाष बोस उठा, "लीजिए वह आ गई । अव इसे सरला के पास पहचाना चाहिए।" सरसा कही दूर न पी, इसी मकान को एक अधेरी मगर हवादार कोठडी मे अपनी बरिस्मती के दिनो को नाजुक उगलियो के पोरो पर गिनती और बड़ी-बड़ी उम्मीदो को ठडी सासा के झोको से उढाती हुई जमाना बिता रही थी। साधारण परिचय देने और लेने के बाद सुलतानी उस कोठडी मे पहुचाई गई जिसमे केवल एक चिराग सरला की अवस्था को दिग्वसाने के लिये जल रहा था। जब से सरला को यह कोठडी नसीब हुई तब से आज तब उसने किसी औरत की सूरत नहीं देखी थी। इस समय यकायक सुलतानी पर निगाह डिते ही वह चौंको और ताज्जुब से उसका मुह देखने लगी। सुलतानी ने रिला के पास पहुंच कर धीरे से कहा, "मुझे देख कर यह न समझना कि हुम्हारे लिए कोई दुःखदाई खबर या सामान अपने साथ लाई हू, बल्कि मेरा माना तुम्हें दुस के अथाह समुद्र से निकालने के लिए हुआ है। अपन चित्त को शान्त करो और जो कुछ मैं कहती है उसे ध्यान देवर सुनो।" पाठक ! इस जगह हम यह न लिखेंगे कि सुलतानी ने सरला से क्या- क्या कहा और सरला ने उसकी चलती-फिरती बातो का क्या और फिस तौर पर जवाब दिया अथवा उनदोनो में कितनी देर तक हुज्जत होती रही। हा, इतना जरूर कहेगे कि सुलतानी के आने का नतीजा इस समय पारस- नाय वगरह को खुश करने के लिए अच्छा ही हुमा अर्थात् घण्टे भर के बाद जब सुलतानी मुस्कराती हुई उस कोठडी के बाहर निकली और काठडी का
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