82 बाजर की कोठरी दरवाजा पुन बद कर दिया गया तब उसन (सुलतानी न) पारसनाथ से कहा, ' लीजिए बाबू साहब, मैं आपका काम वर आई। हरन दन की लिसी हुई चिट्ठी का नतीजा तो अच्छा होना ही था, मगर मेरी अनूठी बातो ने मरला का दिल मोम पर दिया और जद उसने मेरी जुवानी यह सुना, बाप लालसिंह उसी के गम मे स यामी हो गया तर तो और भी उसका दिल पिपल वरबह गया और जो कुछ मैंने उसे समझाया और महा उसे उसने खुशी से क्वूल पर लिया। उसने इस बात का भी मुझसे वादा किया है कि य्याह हो जाने पर मैं अपने हाथ अपने बाग को इस मजमून को चिट्ठी लिख दूगी कि मैंने अपनी खुशी और रजाम दी से शिवनदन के साथ शादी कर ली। मगर मुझसे उसने इस बात की शत करा ली है कि शादी होने के समय मैं उसके साथ रहूगी।" सुलतानी की बातें सुनार ये लोग बहुत प्रसन्न हुए और पारसनाथ ने खुशी के मारे उछलते हुए अपने कलेजे को रोक कर सुलतानी से कहा, "क्या हज है अगरएक रोज दो घण्टे के लिए तुम और भी तकलीफ करोगी। तुम्हारे रहने से सरलायो ढाढस बनी रहगी और यह अपने वोल से पिरने न पावेगी। तुम यह न समझो मैं तुम्हें यो ही परेशान करना चाहता हू,बलि विश्वास रखो कि शादी हो जाने पर मैं तुम्हें अच्छी तरह खुश करने विदा रूगा।' सुलतानी ने खुश होकर सलाम किया और जिसके साथ माई थी उसी के साथ मकान के बाहर होकर अपने घर का रास्ता लिया। हमारे पाठक यह जानना चाहते होंगे कि यह शिवन दन कौन हैं जिस के साथ शादी करने के लिए सरला तैयार हो गई। इसके जवाब मे हम इस समय इतना ही कहना काफी समझते हैं कि बादी ने शिवनदन के बारे मे पारसनाथ से इतना ही कहा था कि शिवनन्दन एव साधारण और बिना वाप-मा का गरीब लहका है। उसकी और हरनन्दन की उम एक ही है, बातचीत और चाल-ढाल में भी विशेष पक नहीं है । हरनन्दन और शिव- नदन एक साथ ही पाठशाला में पढते थे, उसी समय से हरनन्दन के दिल मे उसका कुछ खयाल है और उसी के साथ सरला की शादी हलदन पसद करता है।
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