84 नाजर की कोठरा पारसनाथ, हरिहर्रासह, सुलतानी, सरला और शिवन दन क पुरोहित उस मवान में दिखाई दे रहे थे, इनके अतिरिक्त पारसनाथ का भाई धरणीधर भी इस काम म शरीक था जो आधीगत के समय शिवन दनका लाने के निए उत्तवे मकान पर गया हुआ था। रात आधी से ज्यादा जा चुको पी. मकान के अन्दर चौक म शादी का सब सामान ठीव हा चुका था, क्सर इतनी ही थी कि शिवनन्दन आवें और दो-चार रस्म पूरी करने शादी पर दी जाय । थोड़ी ही देर म वह कमर भी जाती रही अर्थात् दरवाजे का कुण्डा खटखटाया गया और जब मामूली परिचय लन वे वाद पारसनाथ ने उस खोला तो शिवनदनसिंह को साथ लिए हुए धरणीधर ने उस ममान अदर पैर रखा। इस समय शिवनदा वे सायवेवल एक आदमी था जिसे पारसनाथ वगैरह पहिचानते न थे। शिवनत्वन पूरे तौर से दूल्हा बने हुए थे। वह मकान के अदर रिस समय दाखिल हुए उस समप मोटे और स्याह कपडा से अपने तमाम बदन को ख्यिाए हुए थे पर जिस समय वह म्याह कपडा उतार पर होने दूर रख दिया उस रामय लोगो नदपा कि उन हाट में मिमी तरह की कमी नहीं है, अवा कवा और जामा जोडा से पूरी तरह तस है। सिर पर बहुत बड़ी मदोल और बादल वा बना सेहरा और उसके ऊपर खुशबूदार फूला ने सेहरे ने उनके चेहर को पूरी तरह स दर रखा था। खर शिवन दनसिंह नाम मात्र के मडवे मे वठाये गय और पुरोहितजी पूमा की सरवाई पुरूषो। यद्यपि पारसनाय वगरह को जल्दी थी और चाहते थे कि दोपल ही में शादी हो हवा के घट्टी हो जाये, मगर पुरो हतजी को यह बात मजूर न थी। वे चाहत थे कि पद्धति और विषि म क्सिी प्रकार की पमी न होन पावे, अस्तु लाचार होर पारसनाथ बारह या भी उनकी इच्छानुसार चलना पड़ा। पारसनाय ने नयादान दिया और तौर पर यह शादी राजी खुशा कसापत पा गई। इसी ममय म पारसनापन रेलम दवात और रागज मरला व सामन रख दिया और कहा 'अब वादे के मुतावित लिख द सिमने अपनी प्रसनता से शिवनदन ये साथ अपना विवाह पर लिया इसमें न तो पिसीका दोष है और न किसी ने मुझ पर रिसी तरह का
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