सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पार की कोठरी 8 1 दबाव डाला है।' सरला ने इस बात को मर्जूर किया और पुर्जा लिख बर पाग्मनाथ में हाय म दे दिया। जब पारसनाय ने उमे पढातो उममे यह लिखा हुआ पाया--- मुझे अपने पिता पी आनानुसार हरनन्दनसिंह के अतिरिक्त क्सिी दसरे के साथ विवाह वसा स्वीकार न था। यद्यपि मेरे भाइयों न इसवे विपरीत काम करने की इच्छा से मुये कई प्रकार के दुख दिए औरबडे-बडे खेल खेले, मगर परमात्मा न मेरी इज्जत बचा ली और अन में मेरी शादी हरन दनसिंहही ने माप हो गई।" पुर्जा पढ र पारसनाथ यो ताज्जुब मालूम हुआ और वह साथ भरी आखो से सरसावीतरप देखने लगा, पर उसी समय यकायक दर्वाजे पर विसीवे खटखटाने पी आवाज आई। जब धरणीधर ने जाकर पूछा वि यौन है ? तो जवाब में बाहर से दिशी । वही पुराना परिचय अर्थात् गूलर का फूल' वहा । दर्वाजा खोल दिया गया और धडधडाते हुए कई कादमी मकान के अन्दर दाखिल हो गए । जो लोग इस तरह मकान के अदरमाए ये गिनती मे चालीस से कम न होगे। उनके साथ बहुत सी मशालें थीं और पई आदमी हाय मे नगी तलवार लिए हुए मारने पाटने के लिए भी तैयार दिखाई दे रहे थे। उन लोगों ने आते ही पाररानाय, धरणीधर और हरिहरसिंह की मुखें बांधली और एक आदमी न आगे बढबर पारसनाथ से यहा, "हो मेरे चिरञ्जीय मिजाज पैसा है । पया तुम इस गमय भी अपने चाचा को सयामी ये भेष में देख रहे हो। मशाला की रोशनीस इस समय दिरा रे रागान उजाला हा रहा । पारसनाथ न अपन चाचा लालसिंह को सामने खा देख भय और लग्गा से मुह फेर लिया और उसी समय उसकी निगाह शिवन दन रामसिंह, तमिह और वरयाणसिंह पर पड़ी जि में रखते हो तो यह एक्दम घबडा गया। अव हम पोडी सी रहस्य की बाता पालिखना उचित रामयते है । गुल ताना असल मयांदीवी लौंडी न पी। उसे रागसिंह ने बांदी के यहा रह पर - -