86 काजर की कोठरी भेदा का पता लगान के लिए मुकरर क्यिा था और राममिह की इच्छा- गुसार सुलतानी ने बड़ी खूबी के साथ अपनावाम पूरा किया। यह हरन दन के हाथ की लिखी हुई केवल उसी चिट्ठी को लेकर सरला के पास नहीं गई थी जो यादी ने सिखवाई थी बल्कि और भी एक चिट्ठीलालसिंह के हाय की कर गई थी जिसमें लालसिंह न सच्चा सच्चा हाल लिख कर सरला को ढाढस दी थी और यह भी लिखा था कि तुम्हारा बाप वास्तव म सयासी नही हुआ बल्कि समयानुसार काम करने के लिए छिपा हुआ है, अस्तु इस ममय जो कुछ सुलतानी कहे उसके अनुसार काम करना तुम्हारे लिए अच्छा होगा। यही सबब था विसरला न सुलतानी की बात स्वीकार कर ली और जो कुछ उसने मात्र पढाया उसी के अनुसार काम किया। शियनन्दनसिंह रामसिंह पे आधीन था और जो कुछ उसन दिया वह सब रामसिंह की इच्छानुसार या। दूल्हा बन कर दुष्टो के घर जाने के समय शिवनन्दन अलग हो गया और दूलहा का कामहरनदन ने पूरा किया। सेहरा इत्यादि बधं रहने के सबब किसी तरह का गुमान न हुआ और तब तक राजा साहब को भी मदद आन पहुची जिसका बदोबस्त पहिले ही से सूरजसिंह ने कर रस्सा था। यद्यमि यह सब बात उप यास में गुप्त पी परतु "यान देकर पढ़ने वालो को ऊपर के बयानो से अवश्य झलग गया होगा तथापि जिहोने न समझा हो उनके लिए सक्षेप मे लिख देना हमने उचित जाना। पारसभाय, धरणीधर और हरिहरसिंह इत्यादि जेल मे पहुचाय गए और हरन दनसिंह, सरला तथा अपने मित्रोमो लिए लाससिंह अपन घर पहुंचे। उस समय उनके घर में जिस तरह की खुशी हुई उसका बयान करना व्यय कागज रगना है मगर बाजार में हर एक की जुबान से यही निकलता था कि अपनी रण्डी बांदी भी बदौरत हरन दनसिंह ने गरमा का पता लगा लिया।
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