यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अंक ३, दृश्य २
कामना-(सम्हलकर) क्यों विलास? यह नगर कैसा बसाया जा रहा है?
विलास-आज भयानक युद्ध होगा। कल बताऊँगा।
कामना-अच्छा खेल होगा, सभ्यता का तांडव नृत्य होगा। वीरता की तृष्णा बुझेगी, और हाथ लगेगा सोना!
विलास-व्यंग्य न करो रानी! विनोद आज मदिरा मे उन्मत्त है; कोई सेनापति नही है।
कामना-तो मैं चलूँ?
विलास-मैं तो पूछ रहा हूँ।
कामना-अच्छी बात है, आन तुम्ही सेनापति का काम करो। लीला और लालसा भी रणक्षेत्र में साथ जायँगी कि नहीं? (नेपथ्य मे कोलाहल)
विलास-(बिगड़कर) स्त्रियों के पास और होता क्या है।
कामना-कुछ नही, अपना सब कुछ देकर ठोकरें खाना! उपहास का लक्ष्य बन जाना।
विलास-इस समय युद्ध के सिवा और कुछ नहीं। फिर किसी दिन उपालम्भ सुन लूँगा।
७
१०१