पृष्ठ:कामना.djvu/१०७

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कामना
 

(वेग से जाता है)

(लीला और लालसा के साथ मद्यप विनोद का प्रवेश)

विनोद-रानी, सब पागल हैं।

कामना-एक तुमको छोड़कर विनोद।

विनोद-मैं तो कहता हूँ; दस घड़े रक्त के न बहाकर यदि एक पात्र मदिरा पी लो, सब कुछ हो गया।

लीला-रानी, देखो, यह सोने का नाल नया बनकर आया है।

कामना-बहुत अच्छा है।

लालसा-और यह सोने के तारों से बिनी हुई नई साड़ी तो देखी ही नहीं। (दिखाती है)

कामना-वाह। कितनी सुंदर शिल्पकला है।

विनोद-इस देश से खूब सोना घर भेजा गया है। वहाँ नये-नये सौंदर्य-साधन बनाये जा रहे हैं। रानी, लाल रक्त गिराने से पीला सोना मिलने लगा। कैसा खेल है?

कामना-बहुत अच्छा।

लालसा-आज विलास सेनापति होकर आक्रमण करने गये हैं, तो विनोद, तुम्हीं मेरे पटमंडप मे चलो। मैं अकेली कैसे रहूँगी?

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