पृष्ठ:कामना.djvu/११०

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अंक ३, दृश्य २
 

कामना-क्या शत्रु भाग गये?

विलास-हाँ रानी।

कामना-अच्छा विलास, बैठो, विश्राम करो।

विलास-(देखकर) आहा। यह अभी यहीं है। इसको मेरे पटमंडप मे न ले जाकर यहाँ किसने छोड़ दिया?

कामना-वह सैनिक इसे यही पकड़ लाया। परंतु कहो तो विलास, इसे क्यों पकड़ा?

विलास-तुमको रानी, राज्य करने से काम, इन पचड़ो में क्यों पड़ती हो? युद्ध में स्त्री और स्वर्ण, यही तो लूट के उपहार मिलते है। विजयी के लिए यही प्रसन्नता है। इसे मेरे यहाँ भेज दो।

कामना-विलास, तुमको क्या हो गया है? मैं रानी हूँ, तुम्हारी शय्या सजाने की दासी नहीं। अभी चले जाओ।

स्त्री-दोहाई रानी की। तुम्हारे राज्य के बदले भी मुझे ऐसा पुरुष नहीं चाहिये। मुझे बचाओ, यह नरपिशाच! ओह-

(मुँह ढकती है)

विलास-अच्छा, जाता हूँ।

(सरोष प्रस्थान)

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