पृष्ठ:कामना.djvu/११३

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कामना
 

माँग रहे है। मैं कैसे छोड़ दूँ, कैसे न दूँ। ठहरो, मुझे इस सम्पूर्ण मनुष्यत्व को आँखो से देख लेने दो।

सैनिक-नाओ रमणी, लौट जाओ। तुम्हारा सेना-निवेश दूर है।

लालसा-फिर तुम्हे इतने रूप की क्या आवश्यकता थी, जब हृदय ही न था?

(तिरस्कार से देखता हुआ सैनिक जाता है)

लालसा-(स्वगत) चला जायगा। यों नहीं (प्रकट) अच्छा तो सुनो। क्या तुम अपनी स्त्री को भी नहीं छुड़ाना चाहते?

सैनिक-(लौटकर) अवश्य छुड़ाना चाहता हूँ-प्राण भी देकर।

लालसा-अच्छा चलो, मैं तुम्हारी सहायता करूँगी। तुम्हारे शिष्ट आचरण का प्रतिदान करूँगी। चलोगे, डरते तो नहीं? सैनिक-डर क्या है? चलूँगा।

(दोनों जाते है। विलास का प्रवेश)

विलास-यह उन्मत्त विलास-लालसा! वक्षःस्थल मे प्रबल पीड़ा! ओह! अविश्वासिनी स्त्री, तूने मेरे पद की मर्यादा, वीरता का गौरव और ज्ञान की

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