सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कामना.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अंक ३, दृश्य ३
 

गरिमा सब डुबा दी। जी चाहता है, इस अतृप्त हृदय में छुरा डालकर नचा दूँ। (ठहरकर) परंतु विलास। विलास। तुझे क्या हो गया है? तुझे इससे क्या? राज्य यदि करना है, तो इन छोटी-छोटी बातों पर क्यों ध्यान देता है? अपनी प्रतिभा से शासन कर।

(विवेक आता है)

विवेक-आहा। मंत्री और सेनापति महाशय, नमस्कार। परंतु नही, जब मंत्री और सेनापति दोनो पद-पदार्थ एक आधार मे है, तब राजा क्या कोई भिन्न वस्तु है। दोनो की सम्मिलित शक्ति ही तो राजशक्ति है। अतएव हे राज-मंत्री-सेनापति। हे दिक्-काल-पदार्थ। हे जन्म-जीवन और मृत्यु। आपको नमस्कार।

विलास-(विवेक का हाथ पकड़कर) बूढ़े, सच बता, तू पागल है या कोई बना हुआ चतुर व्यक्ति? यदि तुझे मार डालूँ!

विवेक-(हँसकर) अरे भ्रम है। सब मंत्री मूर्ख होते है, कौन कहता है, चतुर होते हैं। जिसे इतनी पहचान नहीं कि मै पागल हूँ या स्वस्थ, वह राना का कार्य क्या करेगा?

१०९