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पृष्ठ:कामना.djvu/११९

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कामना
 


नहीं। बाँकपन ही तो सौन्दर्य है। मै उसी को मानती हूँ। करुणा और संतोप सृष्टि की दुर्बलतायें है। मेरे पास उनके लिए सहानुभूति नही (जाती

वनलक्ष्मी-मेरा मृदुल कुटुम्ब! मेरा कोमल शृंगार! इस क्रूर महत्त्वाकांक्षा से झुलस रहा है। मै उन्हे आलिंगन करूँगी। (खेत में बैठकर एक तृणकुसुम को देखती हुई) तू कुछ कह रहा है। तेरा कुछ संदेश है। तेरी लघुता एक महान रहस्य है। मै तेरे साथ स्वर मिलाकर गाऊँगी। (गाती है)

पृथ्वी की श्यामल पुलको मे सत्विक स्वेद बिन्दु रंगीन।
नृत्य कर रहा हिलता हूँ मैं मलयानिल से हो स्वाधीन।
आँधी की बहिया बह जाती चिढ़ कर चल जाती चपला।
मैं यों ही हूँ, ये कोई भी मेरी हँसी न सकते छीन॥
तितली अपना गिरा और भूला-सा पंख समझती है।
मुझे छोड़ देती, मेरा मकरन्द मुझी मे रहता लीन॥
मधु-सौरभ वाले फल-फूलों को लुट जाने का डर हो।
मैं झूला झूलती रही हूँ-बनी हुई अम्लान नवीन॥
व्यथित विश्व का राग-रक्त क्षत हूँ, मुझको पहचानो तो।
सुधा-भरी चाँदनी सुनाती मुझको अपनी जीवन-बीन॥

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