पृष्ठ:कामना.djvu/१३

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कामना
 

किसी को विवरण देना नहीं चाहती। केवल वह पूर्ण हो, और वहाँ तक, जहाँ तक कि उसकी इयत्ता हो।बस—

(दूर पर वंशी की ध्वनि । कामना इधर-उधर चौंककर देखने लगती है। समुद्र में एक छोटी सी नाव आती दिखाई पड़ती है। एक युवक बैठा डाँड चला रहा है। कामना आश्चर्य से देखती है। नाव तीर पर आकर लगती है)

-हैं, यह कौन ! मै क्यों झुकी जा रही हूँ ? और, सिर पर इसके क्या चमक रहा है, जो इसे बड़ा प्रभावशाली बनाये है । इसका व्यक्तित्व ऐसा है कि मै इसके सामने अपने को तुच्छ बना दूं, और इसे समर्पित हो जाऊँ।

(कुछ सोचती है। युवक स्थिर दृष्टि से उसकी ओर देखता हुआ बाँसुरी बजाता है। कामना उठती और फूल इकट्ठे करती है। अकस्मात् उसके अपर बिखेर देती है। युवक पैर उठाता है कि नीचे उतरे । कामना उसको हाथ पकड़कर नीचे ले आती है। युवक अपना स्वर्ण-पट्ट खोलकर युवती कामना के सिर पर बाँधता है, और वह आलिंगन करती है)

[पटाक्षेप]