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कामना
तारा की संतानो का खेल एक बड़े छिद्र से पिता देखा करते हैं।
विलास-कौन-सा छिद्र?
कामना-वही, जिससे दिन हो जाता है । पिता का असीम प्रकाश उससे दिखलाई पड़ता है; क्योकि वह केवल आलोक है। रात को मँझरीदार परदा खीच लेता है । वही कहीं-कहीं से तारे चमकते हैं। यह सब उसी लोक का प्रकाश है।
विलास-अच्छा, तो वहॉ जाते कैसे हैं ?
कामना-पिता की आज्ञा से, कभी छोटी, कभी बड़ी एक राह खुलती है, और किसी दिन बिलकुल नहीं, उसे चंद्रमा कहते हैं । अपने शीतल पथ से थकी हुई तारा की संतान अपने खेल समाप्त कर उसी से चली जाती है।
विलास-( आश्चर्य से ) भला तारों की राह से ये क्यों भेजे जाते हैं ?
कामना— यह खिलवाड़ी और मचलने वाली संतान थका देने के लिए भेनी जाती है। हमारे अत्यंत प्राचीन आदेशों मे तो यही मिलता है, ऐसा
ही हम लोग जानते है।
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