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पृष्ठ:कामना.djvu/२५

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कामना
 

के लिए । मेरी सखी कामना ! आह. मुझे भी एक वैसी ही मिलनी चाहिये। ( वन-लक्ष्मी का प्रवेश)

लीला-तुम कौन?

वन-लक्ष्मी-मै वन-लक्ष्मी हूँ।

लीला-क्यों आई हो?

वन-लक्ष्मी-इस द्वीप के निवासियो में जब व्याह होता है, तब मै आशीर्वाद देने आती है। परंतु किसी के सामने नहीं।

लीला-फिर मेरे लिए ऐसी विशेषता क्यों?

वन-लक्ष्मी-अभिशाप देने के लिए ।

लीला-हम 'तारा की संतान हैं। हमे किसी के अभिशाप से क्या सम्बन्ध । और, मैने किया ही क्या है जो तुम अभिशाप कहकर चिल्लाती हो। इस द्वीप मे आज तक किसी को अभिशाष नहीं मिला, तो मुझे ही क्यो मिले?

वन-लक्ष्मी-मैने भूल की। अभिशाप तो तुम स्वयं इस द्वीप को दे रही हो ।

लीला-जो बात मै ससभती नहीं, उसी के लिए क्यो मुझे-

वन-लक्ष्मी-जो वस्तु कामना को अकस्मात

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