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पृष्ठ:कामना.djvu/२७

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कामना
 

और मदिरा के शीतल आवरण से कलेजे मे उतर जाती है।

लीला-मदिरा ! क्या कहा ?

वन-लक्ष्मी-हॉ-हॉ, मदिरा, जो तुम्हारे उस पात्र मे रक्खी है। (पात्र की ओर संकेत करती है)

लीला-क्या इसे कहती हो ? (पात्र उठा लेती है) इसे तो सखी कामना ने ब्याह के उपलक्ष में भेजा है । और सोना क्या ?

वन-लक्ष्मी-वही, जिसके लिए लालायित हो।

लीला-तुम वन-लक्ष्मी हो, तभी-

वन-लक्ष्मी-क्या मैं भी उस चमकीली वस्तु के लिए शीतल हृदय मे जलन उत्पन्न करूँ ?

लीला-जलन तो है ही । तुम्हारे पास नहीं है, इसी लिए मुझे भी उससे वचित रखना चाहती हो। कामना के पास है, और मैं उसे पाने का प्रयास कर