अंक १, दृश्य ४
हमारे द्वीप मे लोहे का उपयोग सृष्टि की रक्षा के, लिए है। उसे संहार के लिए मत बना। जो वस्तु, खेती और हिस्र पशुओ से सरल जीवों की रक्षा का, साधन है, उसे नरक के हाथ, हिसा की उँगलियाँ न बना दें। कामना को उस विदेशी युवक के साथ महार्णव मे विसर्जन कर दे। उसे दूसरे देश चले जाने के लिए भी कह दे; परंतु-
लीला-वन-लक्ष्मी हो ? क्या तुम ऐसा निष्ठुर निर्देश करती हो कि मै अपनी सखी को-
वन-लक्ष्मी--हाँ ! हाँ ! उस अपनी सखी से दूर रह ! केवल तू ही उस अग्नि का ईधन बनकर सत्या-नाश न फैला। महार्णव से मिलती हुई तरंगिणी के नल मे चुटकी लेता हुआ, शीतल और सुगंधित पवन इस देश मे बहने दे। इस देश के थके कृपको को विनोद-पूर्ण बनाने के लिए, प्रत्येक पथिक पर,के सदृश, यहाँ के वृक्षो को फूल बरसाने दे। आग, लोहे और रक्त की वर्षा की प्रस्तावना न कर। इस विश्वम्भरा को, इस जननी को, धातु निकालकर,खोखली और निर्बल बनाने का समारम्भ होने से रोक । मेरी प्यारी लीला ! मान जा । कहे जाती हूँ,
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