पृष्ठ:कामना.djvu/३३

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कामना
 

कामना -अखंड मिलन हो।

विनोद-उपासना-गृह में भी तो चलना होगा।

लीला-यह तो नियम है।

कामना-थोड़ी और पी लो, तो चले । सब लोग एकत्र भी हो रहेगे। परंतु देखो, जो मै कहूँ, वहां वही करना।

लीला और विनोद-वही होगा।

(दोनों पात्र खाली करके जाते हैं)

कामना-मेरे भीतर का बॉकपन सीधा हो गया है। मेरा गर्व उसके पैरो मे लोटने लगा। मेरा लावण्य मुझी पर नमक छिड़क रहा है। वह अतिथि होकर आया, आन स्वामी है । व्योम-शैल से गिरती हुई चंद्रिका की धारा आकाश और पाताल एक कर रही है। आनंद का स्रोत बहने लगा है । इस प्रपात के स्वच्छ कणों से कुहासे के समान सृष्टि में अंधकार-मिश्रित आलोक फैल गया है। अंतःकरण के प्रत्येक कोने से असंतोष-पूर्ण तृप्ति की खीकार-सूचनाये मिल रही हैं। विलास । तुम्हारे दर्शन ने सुख भोगने के नये-नये आविष्कारा से मस्तिष्क भर दिया है।

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