पृष्ठ:कामना.djvu/३४

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अक १, दृश्य

क्लांति और श्रांति मिलने के लिए सकल इंद्रियाँ परिश्रम करने लगी है--विलास । ( गाती है )

"घिरे सघन घन नीद न आई

निर्दय भी न अभी आया

चपला ने इस अंधकार मे

क्यों आलोक न दिखलाया

बरस चुकी रस-बूंद सरस हो

फिर भी यह मन कुम्हलाया

उमड़ चले आँखो के झरने

हृदय न शीतल हो पाया

-चलू उपासना-गृह में-( जाती है )

[ पट-परिवर्तन]



पाँचवाँ दृश्य

स्थान -उपासना गृह

(सामने धूनी में जलती हुई अग्नि । बीच मे कामना स्वर्ण-पट्टबाँधे । दोनो ओर द्वीप के नागरिक । सबके पीछे विलास),

कामना-पिता । हम सब तेरी संतान हैं।

(सब यही कहते हैं)

कामना-हमारी परस्पर की भिन्नता के अवकाश

को तू पूर्ण बनाये रख, जिसमे हम सब एक हो रहे ।

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