पृष्ठ:कामना.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कामना
 

दंड देता है। वह न्याय करता है, अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा

विवेक-परन्तु युवक, हम लोग आज तक उसे पिता समझते थे। और, हम लोग कोई अपराध नहीं करते। करते है केवल खेल । खेल का कोई दंड नहीं। यह न्याय और अन्याय क्या ? अपराध और अच्छे कर्म क्य है, हम लोग नहीं जानते। हम खेलते है, और खेल में एक दूसरे के सहायक है, इसमे न्याय का कोई कार्य नहीं। पिता अपने बच्चों का खेल देखते है, फिर कोप क्यो ?

विलास-यह तुम्हारी ज्ञान-सीमा संकुचित होने के कारण है। तुम लोग पुण्य भी करते हो, और पाप भी।

विवेक-पुण्य क्या ?

विलास-दूमरो की सहायता करना इत्यादि । पाप है दूसरों को कष्ट देना, नो निषिद्ध है।

विवेक-परंतु निषेध तो हमारे यहाँ कोई वस्तु नहीं है। हम वही करते हैं, जो जानते हैं; और जो जानते हैं, वह सब हमारे लिए अच्छी बात है।केवल निषेध का घोर नाद करके तुम पाप क्यो प्रचा-

३२