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पृष्ठ:कामना.djvu/३८

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अंक १, दृश्य ५

रित कर रहे हो ? वह हमारे लिए अज्ञात बात है। तुम ज्ञान को अपने लिए सुरक्षित रक्खो । यहाँ-

कामना-दिव्य पुरुष से केवल शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये, इतनी-

विनोद-हम आपके आज्ञाकारी है। आपके नेतृत्व-काल मे अपूर्व वस्तु देखने मे आई, और कभी न सुनी हुई बाते जानी गई । आप धन्य है।

एक-हम लोग भी स्वीकार ही करेंगे। तो अब सब लोग जायें ?

विनोद-ब्याह का उपहार ग्रहण कर लीजिये।

कामना-वह ईश्वर की प्रसन्नता है। आप लोगो को उसे लेकर जाना चाहिये।

(विनोद और लीला सबको मदिरा पिलाते हैं)

कामना-है न यह उसकी प्रसन्नता ? दो-चार-अवश्य, यह तो बड़ी अच्छी पेया है ।

( सब मोह में शिथिल होते हैं)

-ईश्वर से डरना चाहिये, सदैव सत्कर्म-

एक-नही तो वह इसी ज्वाला के समान अपने क्रोध को धधका देगा।

दूसरा-और हम लोगो को दंड देगा।

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