पृष्ठ:कामना.djvu/४०

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अंक १, दृश्य ५

बात है। यह क्या है ? अब खेल समाप्त होने पर तुम्हारी गोद मे शीतल पथ से हम न जाने पावेगे । तुम दंड दोगे। नहीं, नहीं-ओह । न्याय करोगे ? भयानक न्याय-क्योंकि हम अपराध करेगे, और वह न्याय होगा दंड-अह ! उसने कहा कि तुम निर्जीव बनाकर इस द्वीप से निकाल दिये जाते हो,यही प्रमाण है कि तुम अपराधी हो । क्या हम अपराधी है ? अपराध क्या पदार्थ है ? क्षुद्र स्वार्थों से बने हुए कुछ नियमो का भंग करना अपराध होगा। यही न ? परंतु हमारे पास तो कोई नियम ऐसे नहीं थे, जो कभी तोड़े जाते रहे हो । फिर क्यो यह अपराध हम पर लादा जा रहा है ? पिता । प्रेममय पिता । हमारे इस खेल मे भी यह कठोरता, यह दंड का अभिशाप लगा दिया गया । हमारे फूलो के द्वीप मे किस निर्दय ने कॉटे बखेर दिये ? किसने हमारा प्रभात का स्वप्न भंग किया ? स्वप्न-आ । कुदृश्यो से थकी हुई आँखों से चली आ-विश्राम । आ । मुझे शीतल अंक मे ले!-उँह । सो जाऊँ। (सोने की चेष्टा करता है | स्वप्न मे स्वर्ग और नरक का दृश्य देखता हुआ अर्ध-निद्रित अवस्था में उठ खड़ा होता है)-

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