पृष्ठ:कामना.djvu/५३

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कामना
 


कामना--मुझी से, उपासना-गृह की प्रथा पूरी नहीं हुई।

विलास--परंतु और तो कुछ अंतर नहीं है। मेरा हृदय तो तुमसे अभिन्न ही है। मै तुम्हारा हो चुका हूॅ।

कामना--परंतु--(सिर झुका लेती है)

विलास--कहो कामना। (ठुड्डी पकड़कर उठाता है)

कामना--मै अपनी नहीं रह गई हूॅ प्रिय विलास क्या कहूॅ।

विलास--तुम मेरी हो। परंतु सुनो, यदि इस विदेशी युवक से व्याह करके कही तुम सुखी न होओ, या कभी मुझी को यहाॅ से चले जाना पड़े?

कामना--(आश्चर्य और क्षोभ से) नही विलास, ऐसा न कहो।

विलास--परंतु अब तो तुम इस द्वीप की रानी हो। रानी को क्या व्याह करके किसी बंधन मे पड़ना चाहिये।

कामना--तब तुमने मुझे रानी क्यों बनाया?

विलास--रानी, तुमको इसलिए रानी बनाया कि तुम

नियमों का प्रवर्तन करो। इस नियम-पूर्ण

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