पृष्ठ:कामना.djvu/५७

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कामना
 

१—देखो, तुम उसकी ओर न देखना।

२—क्यो, विनोद को छोड़कर तुम्हे भी जब यह अधिकार है, तब मै ही क्यों वंचित रहूँ?

१—परंतु फिर तुम्हारी प्रेयसी को—

२—बस, बस, चुप रहो।

१—तब क्या किया जाय। वह मुझसे कंकणों के लिए कहती थी, इतना सोना मैं कहाँ से इकट्ठा करूँ ?

२—नदी की रेत से।

१—बड़ा परिश्रम है।

२—तब एक उपाय है-

१—क्या?

२—शांतिदेव इधर आनेवाला है। उसके पास बहुत-सा सोना है। वह ले लिया जाय। तीर और धनुष तो है न?

१—यही करना होगा।

(विवेक का प्रवेश)

विवेक-क्यो, क्या सोचते हो युवक?

१—तुमसे क्यों कहूँ?

२—तुम पागल हो।

विवेक-उन्मत्त। व्यभिचारी!! पशु!!!

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