पृष्ठ:कामना.djvu/५८

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अंक २, दृश्य २
 

१—चुप बूढ़े।

विवेक—व्यभिचार ने तुम्हे स्त्री-सौंदर्य का चित्र दिखलाया है, और मदिरा उस पर रंग चढ़ाती है। क्यो, क्या यह सौदर्य पहले कहीं छिपा था जो अब तुम लोग इतने सौदर्य-लोलुप हो गये हो ।

१—जा, जा, पागल बूढ़े, तू इस आनंद को क्या समझे?

विवेक-सौंदर्य, इस शोभन प्रकृति का सौंदर्य विस्मृत हो चला। हृदय का पवित्र सौंदर्य नष्ट हो गया । यह कुत्सित, यह अपदार्थ—

२—मूर्ख है, अंधा है। अरे मेरी आँखों से देख, तेरी आँखें खुल जायँगी, कुत्सित हृदय सौदर्य-पूर्ण हो जायगा । बूढ़े, परंतु तुझे अब इन सब बातों से क्या काम ? जा।

१—तुझे क्या यदि उसकी भौंह में एक बल है, आँखों के डोरे में खिचाव है, वक्षस्थल पर तनाव है, और अलकों में निराली उलझन है, चाल में लचीली लटक है ? तू आँखें बंद रख ।

२—उस पर उस चमकते हुए सोने के कंकण- हारों से सुशोभित अम्मान आभूषण-परिपाटी ! मूर्ख-

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