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पृष्ठ:कामना.djvu/५९

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कामना

१—पागल है।

विवेक—मै पागल हूँ | अच्छा है जो सज्ञान नही हूँ, इस बीभत्स कल्पना का आधार नहीं हूँ। हाय | हाय ! हमारे फूलो के द्वीप के फूल अब मुरझा- कर अपनी डाल से गिर पड़ते हैं। उन्हें कोई छूता नहीं । उनके सौरभ से द्वीप-वासियो के घर अब नहीं भर जाते । हाय मेरे प्यारे फूलों ।(जाता है)

दोनो—जा, जा । (छिप जाते हैं)

(शांतिदेव का प्रवेश)

शांतिदेव—मै इसे कहाँ रक्खूँ , किधर से चलूँ ? हैं, मुझे क्या हो गया ! क्यो भयभीत हो रहा हूँ? इस द्वीप मे तो यह बात नहीं थी। परंतु, तब सोना भी तो नही था । अच्छा, इस पगडंडी से निकल चलूं।

( बगल से निकलना चाहता है कि दोनों छिपे हुए तीर चलाते हैं। शांतिदेव गिर पड़ता है । दोनों आकर उसको दबा लेते है । सोना खोजते हैं)

(अकस्मात शिकारियों के साथ कामना का प्रवेश)

कामना—यह क्या, तुम लोग क्या कर रहे हो ?

लीला-हत्या—

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