पृष्ठ:कामना.djvu/६३

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कामना

कामना-विनोद, मैं तुमको सेनानी बनाती हूँ। देखो, प्रबंध करो। आतंक न फैलने पावे ।

विलास-यह लो सेनापति का चिन्ह ।

(एक छोटा-सा स्वर्ण-पट्ट पहनाता है। कामना तलवार हाथ मे देती है । सब भय और आश्चर्य से देखते हैं)

कामना-(शिकारियों से ) देखो, आन से जो लोग इसकी आज्ञा नही मानेगे, उन्हे दंड मिलेगा।

(सब घुटने टेकते हैं)

विलास-परंतु सेनापति, स्मरण रखना, तुम इस राजमुकुट के अन्यतम सेवक हो। रानसेवा में प्राण तक दे देना तुम्हारा धर्म होगा।

विनोद-(घुटने टेककर) मै अनुगृहीत हुआ।

लीला-(धीरे से) परंतु यह तो बड़ा भया- नक धर्म है।

कामना-हाँ विलासनी।

विलास-आज राजसभा होगी। उसी में कई पद प्रतिष्ठित किये जायेंगे। वहीं सम्मान किया जाय ।

कामना-अच्छी बात है।

(विनोद अपने सैनिकों के साथ परिक्रमण करता है)

[ पट-परिवर्तन ]

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