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अंक २, दृश्य ३
शीतल धरती हो गई, शीतल पड़ी फुहार ;
शीतल छाती से लगी, शीतल चली बयार ।
सभी ओर नई हरियाली है ॥ छटा० ॥
(सहसा कामना का कई युवकों के साथ प्रवेश)
कामना—फूल के हार कहाँ लीला | तपा हुआ सोने का हार है । शीतलता कहाँ, ज्वाला धधक उठी है। यह आनंद करने का समय नही है ।
विनोद—क्या है रानी ?
कामना—विनोद, ये शिकारी उन अपराधियो के रक्षक है, इन्हे दिन-रात वहाँ रहना चाहिये । तब इनके जीवन-निर्वाह का प्रबंध—
विनोद—जैसी आज्ञा हो ।
(विलास का प्रवेश)
विलास—ये शिकारी नहीं, सैनिक हैं, शांति- रक्षक है । सार्वजनिक संग्रहालय पर अधिकार करो। इनमे से कुछ उसकी रक्षा करेगे, और बचे हुए कारागार की।
विनोद—कारागार क्या ?
विलास—वही, जहाँ अपराधी रक्खे जाते है, जो शासन का मूल है, जो राज्य का अमोघ शस्त्र है।
लीला—(विनोद से) यह तो बड़ी अच्छी बात है।
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