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पृष्ठ:कामना.djvu/७१

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कामना

संख्या बहुत बढ़ती चली जा रही है। यह मेरे लिए गौरव की बात है कि मुझे आप लोगो ने इसके लिए उपयुक्त समझा है। परंतु आप लोगो ने मेरे और अपने बीच का सम्बन्ध तो अच्छी तरह समझ लिया होगा?

एक-नहीं।

विलास-(आश्चर्य से ) नहीं समझा ! अरे, तुमको इतना भी नहीं ज्ञान हुआ कि यह तुम्हारी रानी हैं, और तुम इनके प्रजा ?

सब-हम प्रजा हैं।

विलास-देखो, ईश्वर असंख्य प्राणियों का, इस सारी सृष्टि का जिस प्रकार अधिपति है, उसी प्रकार तुम अपने कल्याण के लिए,अपनी सुव्यवस्था के लिए, न्याय और दंड के लिए इनको अपना अधि- पति मानते हो। जिस प्रकार एक वन्य पशु दूसरे को सताकर उसे खा जाता है, और उसे दंड देने के लिए मृगया के रूप मे ईश्वर हम लोगो को आज्ञा देता है, उसी प्रकार हमारी इस जाति के एक दूसरे के अपराधियो को दंड देने के लिए रानी की आव- श्यकता हुई। और, वह हुई ईश्वर की प्रतिनिधि ।

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