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पृष्ठ:कामना.djvu/८५

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कामना

संतोष-देवी, तुम्हारे और कौन हैं ?

करुणा-यह प्रश्न इस द्वीप में नहीं था । सब एक कुटुम्ब थे, परन्तु अब तो यही कहना पड़ेगा कि मै शांतिदेव की बहन हूँ। जब से उसकी हत्या हुई, मै निस्सहाय हो गई । लालसा ने सब धन अपना लिया, और घर मे भी मुझे न रहने दिया । वह कहती है कि इस घर पर और सम्पत्ति पर केवल मेरा अधिकार है और रहेगा। मै इस स्थान पर कुटीर बनाकर रहती हूँ। अकेली मै अन्न नहीं उत्पन्न कर सकती, जंगली फलों पर निर्वाह करती हूँ। मै और कोई भी संसार के पदार्थ नही पा सकती; क्योकि सबके विनिमय के लिए अब सोना चाहिये । प्राकृ- तिक अमूल्य पदार्थों का मूल्य हो गया-वस्तु के बदले आवश्यक वस्तु न मिलने से प्राकृतिक साधन भी दुर्लभ है । सोने के लिए सब पागल है। अका- रण कोई बैठने नहीं देता। जीवन के समस्त प्रश्नों के मूल मे अर्थ का प्राधान्य है । मैं दूर से उन धनियो के परिवार का दृश्य देखती हूँ । वे धन की आवश्यकता से इतने दरिद्र हो गये है कि उसके बिना उनके बच्चे उन्हे प्यारे नही लगते । धन का-अर्थ का-उपभोग

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