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अंक २, दृश्य ८
 

करने के लिए बच्चो की-संतानो की-आवश्यकता होती है। मै अपनी निर्धनता के आँसू पीकर संतोष करती हूँ और लौटकर इसी कुटीर में पड़ रहती हूँ।

संतोष-धन्य है तू बहन! आज से मैं तेरा भाई हूँ, मै तेरे लिए हल चलाऊँगा, तू दुःख न कर, मैं तेरा सब काम करूँगा। जिसका कोई नहीं है, मैं उसी का होकर देखूगा कि इसमे क्या सुख है। हाँ, नाम तो बताया ही नहीं?

करुणा-करुणा!

संतोष-और मेरा नाम संतोष है बहन।

करुणा-अच्छा भाई, चलो, कुछ फल है, खा लो।

(दोनो कुटीर में जाते है)



आठवाँ दृश्य

(जंगल मे शिकारी लोग मांस भून रहे है, मद्य चल रहा है, नये शिकार के लिए खोज हो रही है। एक ओर से विलास और विनोद का प्रवेश। दूसरी ओर से कामना, लालसा और लीला का आना। विनोद तलवार निकालकर सिर से लगाता है। वैसा ही सब करते हैं)

सब-रानी की जय हो।

कामना-तुम लोगो का कल्याण हो।

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