पृष्ठ:कामना.djvu/९७

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कामना
 


स्वतंत्र रूप से इसकी सहायता करेंगे। उस समय हमारी जाति समृद्ध और आनन्द-पूर्ण होगी। इस नगर मे रहकर हम लोग युद्ध और आक्रमणों से भी बचेगे।

(विवेक प्रवेश करके)

विवेक-बाबा यह बड़े-बड़े महल तुम लोगो ने क्यों बना डाले? क्या अनन्त काल तक जीवित रह कर दुख भोगने की तुम लोगो की बलवती इच्छा है?

दम्भ-गन्दा वस्त्र, असभ्यता से पूर्ण व्यवहार, यह कैसा पशु के समान मनुष्य है। दूर रह। मुझे छूना मत। इसे लज्जा नहीं।

विवेक-लज्जा जो अपराध करता है, उसे होती है। मै क्यों लज्जित होऊँ। मुझे किसी स्त्री की ओर प्यासी आँखो से नहीं देखना है, और न तो कपड़ों के आडम्बर मे अपनी नीचता छिपाना है।

दुर्वृत्त-बर्बर। तुझे बोलने का भी ढंग नहीं मालूम। जा, चला जा, नहीं तो मै बता दूँगा कि नागरिको से कैसे व्यवहार किया जाता है।

विवेक-काँटे तो बिछ के थे, उनसे पैर बचाकर चलने मेँ त्राण हो जाता, परन्तु तुम लोगो ने नगर

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