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पृष्ठ:कामना.djvu/९६

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अंक ३, दृश्य १
 


लेकर झगड़े भी होगे, मार-पीट होगी। तो फिर मैं औषधि और शस्त्र-चिकित्सा के द्वारा अधिक-से-अधिक सोना ले सकूँगा।

प्रमदा-परन्तु प्राचार्य की अनुमति क्या है?

दुर्वृत्त-आचार्य होगे व्यवस्थापक। फिर तो अवस्था देखकर ही व्यवस्था बनानी पड़ेगी।

दम्भ-संस्कृति का आन्दोल हो रहा है। उसकी कुछ लहरे उँची हैं और कुछ नीची। यह भेद अब फूलों के द्वीप में छिपा नही रहा। मनुष्य-मात्र के बराबर होने के कोरे असत्य पर अब विश्वास उठ चला है। उसी भेद-भाव को लेकर समान अपना नवीन सृजन कर रहा है। मै उसका संचालन करूँगा।

दुर्वृत्त-उसकी तो आवश्यकता हो गई है परोपकार और सहानुभूति के लिए समान की अत्यन्त आवश्यकता है।

दम्भ-योग्यता और संस्कृति के अनुसार श्रेणी-भेद हो रहा है। जो समुन्नत विचार के लोग हैं, उन्हें विशिष्ट स्थान देना होगा। धर्म-संस्कृति और समान की क्रमोन्नति के लिए अधिकारी चुने जायगे। इससे समान की उन्नति में बहुत-से केन्द्र बन जायँगे, जो

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